Thursday, 27 October 2016

मेरे दाता के दरबार में……….भजन

मेरे दाता के दरबार में……….भजन

मेरे दाता के दरबार में, सब लोगो का खाता।
जो कोई जैसी करनी करता, वैसा ही फल पाता॥
मेरे दाता के दरबार में, सब लोगो का खाता।

क्या साधू क्या संत गृहस्थी, क्या राजा क्या रानी।
प्रभू की पुस्तक में लिक्खी है, सबकी कर्म कहानी।
अन्तर्यामी अन्दर बैठा, सबका हिसाब लगाता॥
मेरे दाता के दरबार में, सब लोगो का खाता।
जो कोई जैसी करनी करता, वैसा ही फल पाता॥

बड़े बड़े कानून प्रभू के, बड़ी बड़ी मर्यादा।
किसी को कौड़ी कम नहीं मिलती, मिले न पाई ज्यादा।
इसीलिए तो वह दुनियाँ का जगतपति कहलाता।
मेरे दाता के दरबार में, सब लोगो का खाता।
जो कोई जैसी करनी करता, वैसा ही फल पाता॥

चले न उसके आगे रिश्वत, चले नहीं चालाकी।
उसकी लेन देन की बन्दे, रीति बड़ी है बाँकी।
समझदार तो चुप रहता है, मूरख शोर मचाता॥
मेरे दाता के दरबार में, सब लोगो का खाता।
जो कोई जैसी करनी करता, वैसा ही फल पाता॥

उजली करनी करले बन्दे, करम न करियो काला।
लाख आँख से देख रहा है, तुझे देखने वाला।
उसकी तेज नज़र से बन्दे, कोई नहीं बच पाता॥
मेरे दाता के दरबार में, सब लोगो का खाता।
जो कोई जैसी करनी करता, वैसा ही फल पाता॥

मेरे दाता के दरबार में, सब लोगो का खाता।
जो कोई जैसी करनी करता, वैसा ही फल पाता॥

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