मन्दिर
में क्यों जाना चाहिए, क्या है, मूर्ति पूजा और आरती |
मन्दिर
वह स्थान है जहां पर देवियों और देवताओं कि मूर्तियाँ स्थापित होती है | हिन्दू
धर्म में 33 प्रकार के देवी और देवता है | हरेक देवी और देवता कि अपनी शक्ति और
वरदान है | हम मन्दिर में आकर्षण के सिद्धान्त (Law of Attraction) के
अनुसार जाते है | जैसे यदि मुझे धन चाहिए तो मैं कुबेर देवता या लक्ष्मी जी कि
मूर्ति के सामने जाकर उनकी पूजा अर्चना करूंगा और आरती (A way of asking from universe) में मै धन कि मांग करूंगा | और
यदि मुझे शिक्षा चाहिए तो मैं सरस्वती जी कि मूर्ति को चुनुगा और शक्ति चाहिए तो
माँ दुर्गा और भक्ति के लिए हनुमान जी | हर मनुष्य कि अलग-अलग इच्छा होती है, उसे
इधर-उधर न जाना पड़े अत: एक ही मन्दिर अनेक मूर्तियाँ स्थापित कि जाती है |
जब
हम मन्दिर में जाते हैं तो सबसे पहले दंडवत प्रणाम करते हैं इससे हमें पृथ्वी तत्व
कि प्राप्ति होती है | जब हम आरती कि थाली में रक्खे दीपक कि लौ (जो आत्मा और
परमात्मा का सूचक है) से हमें अग्नि तत्व कि प्राप्ति होती है | जब हम चर्नाअमृत (जल में तुलसी के पत्ते) लेते है तो हमें जल तत्व
कि प्राप्ति होती है | जब मन्दिर का पुजारी मौर पंख से आशिर्वाद देता तो तो हमें वायु
तत्व कि प्राप्ति होती है और जब शंखनाद होता है तो हमें आकाश तत्व कि प्राप्ति
होती है और तिलक लगता तो हमें यह आत्मामिक कि स्थिति का बोद्ध कराता है, इससे शरीर
और आत्मा दोनों को लाभ होता है| अत: मन्दिर सपरिवार रोजाना जा चाहिए | आकर्षण का
सिद्धान्त काम करता, करके देखें | मूर्ति पूजा ढोंग नहीं एक सिद्धान्त है और
सिद्धान्त काम करता इसके लिए कोई जाति धर्म व लिंग बंधन नहीं होता |
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